क्या आप जानते है क्यों समझ से बाहर है "स्त्री" ? Do you Know about Ladies
स्त्री के लिए अनेक शब्दो का प्रयोग किया जाता है जैसे गृहिणी ,औरत ,घर की लक्ष्मी ,अर्धांगिनी आदि ये तो हुए सम्मान देने के शब्द |कई लोग स्त्री को नाम देते है ''त्रिया-चरित्रम्'' वे लोग इस नाम को सम्मान की दृष्टि से नही लेते बल्कि गाली के रूप में इस शब्द का प्रयोग करते है लेकिन वे इस शब्द का असली में अर्थ जानते ही नही |आज हम इसी शब्द का अर्थ आपको बतायेगे |दोस्तों हमारे देश में ऐसे लोग भी है जो स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखते है और ऐसे लोग भी है जो स्त्री का सम्मान करना ही नही जानते |ज्यादा तर लोगो का मानना है की स्त्रियां समझ से बाहर होती है कई लोग तो कहते है कि जब भगवान् विष्णु ही स्त्री को नही समझ पाए तो हम कहाँ से समझेगे |दोस्तों अगर आप स्त्री को समझना चाहते है तो उसका पूरे मन से साथ दीजिये आप जरूर समझ जायेगे |आइये जानते है ''त्रिया-चरित्रम्'' शब्द का अर्थ - For More Visit https://onlyinayurveda.com
''त्रिया-चरित्रम्'' अर्थात तीन प्रकार के चरित्र
1 - सात्विक
2 - राजसिक
3 - तामसिक या संचालन
ब्रह्माण्ड का संचालन सुचारु रूप से करने के लिये भगवान् ने तीन प्राकृतिक गुणों की रचना की है | जो सत्व, राजस तथा तम नाम से जानी जाती हैं। साथ ही इन त्रिगुणों के ''परिचालन'' हेतु, त्रि-देवो की संरचना की है ।
निर्माण या रचना, पालन तथा संहार, ये तीनो ही संचालन हेतु ''संतुलित'' रूप में अत्यन्त आवश्यक हैं।
त्रिगुणात्मक प्रकृति, शक्ति या बल, "सात्विक (सत्व), राजसिक (रजो) तथा तामसिक (तमो)" तीन श्रेणियों में विभाजित हैं। हिन्दू वैदिक दर्शन के अनुसार संसार के प्रत्येक जीव और निर्जीव तत्त्व, की उत्पत्ति या जन्म इन्हीं गुणों के अधीन हैं।संसार की रचना - निर्माण, पालन और विनाश के बिना संभव नहीं है । ब्रह्मांड को सुचारु रूप से चलाने के लिए ये तीन गुण अत्यंत अनिवार्य है इनके बिना ''ब्रह्मांड'' का संचालन संभव नहीं हैं।
किसी भी एक चीज की अधिकता या न्यूनतम, संसार चक्र के संतुलन को प्रभावित कर के समस्त व्यवस्था को असंतुलित कर सकती हैं। विनाश के बिना नूतन उत्पत्ति या सृष्टि करने का कोई लाभ नहीं हैं |विनाश होना भी सृष्टि का एक नियम है |
वैसे तो जब भी विनाश होता है, बहुत दुःख दाई होता है लेकिन हर विनाश के बाद नई उत्पत्ति होती है आदि शक्ति,ब्रह्मा ,सरस्वती जिन्होंने समस्त जीवित तथा अजीवित तत्व का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से निर्माण किया हैं, वे भी इन्हीं तीनो गुणों के अधीन भिन्न भिन्न रूपों में अवतारित हुए है ।
महा लक्ष्मी ,महा काली, पार्वती, दुर्गा, सती तथा अनगिनत सहचरियों के रूप में, वे ही तामसिक शक्ति हैं, महा सरस्वती, सावित्री, गायत्री इत्यादि के रूप में वे ही सात्विक शक्ति हैं, महा लक्ष्मी, कमला इत्यादि के रूप में वे ही राजसिक शक्ति हैं |
साथ ही इन देवियों के साथ भैरव क्रमशः भगवान शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु, क्रमशः तामसिक , सात्विक और राजसिक बल से सम्बंधित हैं |
स्त्री में वो शक्ति होती है जो अपनी सूझ बूझ से बड़ी- बड़ी समस्याओ को हल कर सकती है जब स्त्री में शक्ति आती है तो यह उसका ''राजसिक गुण'' होता है तब वह ''दुर्गा'' कहलाती है , जब उसमे गुस्सा आता है तो उसका ''तमोगुण'' प्रखर होता है तब वह ''काली'' कहलाती है और जब ''सत्वगुण'' का प्रभाव बड़ जाता है तब यह ''ब्रह्मचारिणी'' कहलाती है |
कोई भी स्त्री इन तीनो गुणों को ''कभी भी'' धारण करने की क्षमता रखती है और इन गुणों को अपनाती भी है कभी वह प्यार की देवी बन जाती है तो कभी वह क्रोध की ज्वाला बन जाती है |समय के साथ वह अपनेआप को ढाल लेती है इसलिए कहा जाता है की स्त्री को कोई भी, कभी भी नहीं ''समझ'' सकता है |
इसलिए ''त्रिया-चरित्रम्'' शब्द को ''गाली'' की तरह उपयोग न करे बल्कि इस शब्द का असली मतलब जाने |और इस शब्द और स्त्री का सम्मान करे |कोई भी स्त्री इन तीनो गुणों के बिना ''सम्पूर्ण'' नहीं होती है, यही ''प्रकृति'' का नियम है बस जरुरत है तो इन तीन गुणों में सही ''संतुलन'' बनाने की |
क्योकि स्त्री में चन्द्र तत्व अधिक होता है इसलिए स्त्री इन तीनों गुणों को बहुत जल्दी से "धारण" कर लेती है । इसलिए आपकी "समझ'' से बाहर हो जाती है ।
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