स्वप्नदोष से मुक्ति के लिए श्रेष्ठ हैं आंवला।
पुरष द्वारा नींद में वासनात्मक स्वप्न देखने अथवा कामुक चेष्टा मात्र से अनायास उसके वीर्य का निकल जाना ही स्वप्नदोष है। स्वप्नदोष का मूल कारण है गंदे और कामोत्तेजक विचार। अत: इस रोग को निर्मूल करने के लिए औषधियों से भी अधिक कामुक प्रवृत्ति पर संयम की परम आवश्यकता है। प्राचीन भारत में विवाह से पहले २४ साल तक के काल को ब्रह्मचर्य आश्रम का नाम देकर ब्रह्मचर्य पालन को विशेष महत्व दिया था और विवाह के बाद गृहस्थाश्रम में भी संतान की आवश्यकता न होने पर बिना किसी कारण की चंचलता और नमक प्रवृत्ति पर नियंत्रण अत्यावश्यक है। स्वप्नदोष से बचने के लिए सर्वप्रथम कामुक विचार और गलत आदतो द्वारा होने वाले वर्य-नाश को रोकना चाहिए For More Details Visit https://www.healthtreatment.inआंवला चूर्ण ( एक भाग ) और पीसी हुई मिश्री या देशी खंड ( दो भाग ) मिलाकर सुरक्षित रख ले। इसे रोजाना रात्रि को सोने से आधा घंटे पहले दो चम्मच की मात्रा से पानी के साथ ले। लगातार दो सप्ताह तक इसका सेवन करने से स्वप्नदोष में प्राय : आराम हो जाता है। जिन्हे स्वप्नदोष न भी हो उनके लिए भी हितकारी है।
इस प्रयोग से स्वपनदोष के साथ वीर्यविकार जैसे वीर्य का पतला होना, शीघ्रपतन आदि दूर होने के अतिरिक्त रक्त शुद्ध होता है। पाण्डु रोग ( शरीर का पीलापन ) कब्ज और सिरदर्द में लाभ होता है। नेत्रों पर भी हितकारी प्रभाव पड़ता है। वीर्यनाश से कमजोर शरीर में वीर्यवृद्धि होकर नई ताकत आती है और वीर्यरक्षण होता है।
परहेज
1. प्याज, बैगन, उड़द की दाल, रबड़ी, खोया, बासी तले चटपटे पदार्थ, चाय, कोफ़ी , धूम्रपान, शराब व् नशीले पदार्थ, मांस, अंडे, मछली, कामोत्तेजक संगीत और फिल्मे, कामुक चिंतन, पठन आदि उत्तेजक आहार-विहार से बचे।
2. सोने से पूर्व अपने इष्टदेव का स्मरण, स्वाध्याय या सत्साहित्य का पठन करे।
3. सोने से तुरंत पहले दूध न पिए।
4. रात को सोते समय शीतल जल से हाथ पांव धोकर सोएं।
5. सोने से पहले मूत्र-त्याग करे और रात को मूत्र त्याग की इच्छा होने पर आलस्य न करे।
6. पीठ के बल ( सीधा ) तथा पेट के बल न सोएं।
7. कब्ज न होने दे। कब्ज होने पर गुलकंद, त्रिफला, इसबगोल की भूसी में से किसी का प्रयोग करे।
सहायक उपचार
1. योगासन- भुजंगासन, सर्वांगासन, वज्रासन, सिद्धासन, पद्मासन, सूर्य नमस्कार प्रात: मियमित करे।
3. अश्वनी मुद्रा- अशिवनी मुद्रा में बार-बार गुदा को ऊपर खीचते हुए भीतर की और, सिकोड़ना और छोड़ना होता है जैसे घोडा लीद करने के बाद अपनी गुदा को संकुचित और शिथिल करता है। गुदा की मांसपेशियों को सिकोड़ते या तानते समय दोनों हाथो की मुट्ठियाँ कसकर बांधे और गुदा को ढीला छोड़ने पर मुट्ठियाँ खोल दे। यह क्रिया खाना खाकर न करें बल्कि खाली पेट प्रात: सायं 10-15 बार करे। इस मुद्रा को खड़े-खड़े किसी भी सुखमय आसन या कुर्सी पर बैठे-बैठे भी कर सकते है। अश्वनी मुद्रा के अभ्यास से सवप्नदोष, बवासीर, नासूर, कांच निकलना, गर्भाशय के बाहर निकलने, पौरुष ग्रंथि वृद्धि की शिकायते ठीक होती है। अश्वनी मुद्रा योग में मूलबंध मुद्रा का एक भेद है और यह ब्रह्मचर्य पालन और वीर्यरक्षण में सहायक है।
Video Link : https://youtu.be/FBevr3rY2dQ
Channel Link :- https://www.youtube.com/c/crazyindiahealth
No comments:
Post a Comment